मदनापुर गांव में प्रधान का भटठा है। सारे मजदूर वहां काम करने जाते हैं। हम लोगों की बातचीत के बाद 11 लोगों ने डिमान्ड लगाया पर प्रधान जी ने उनको इतना हडकाया कि वह मजदूर साथी भी काम करने से मुकर गये। एक भी आवेदन नहीं लगा। ऐसा कई गांवों में कई टोली के साथियों ने देखा।
सवाल मनरेगा में काम करने का नहीं? सवाल यह है कि हम मजदूर कब तक डरते रहेंगे? हम दूसरों की मरजी से कब तक? और क्यों अपनी जिन्दगी जिएंगे? मेरा ऐसे तमाम मजदूर साथियों से यह कहना है कि हम मेहनतकश मजदूर हैं, जहां फावडा चलायेंगे, जहां हमारा पसीना बहेगा, वहीं से अपनी रोजी–रोटी कमा लेंगे। क्या हम इंसान नहीं? क्या हम इस देश के नागरिक नहीं? साथियों उठो और अपनी ताकत को पहचानों।
सीताराम भगवानपुर – महोली