दो शब्द
वैसे तो ‘हमारा सफ़र’ अख़बार हमेशा संगठन के सामूहिक श्रम से बनता है, लेकिन यह अंक आपके हाथों में पहुंचाते वक़्त हम एक नायाब सुकून महसूस कर रहे हैं। वो इसलिए, कि हमारे इस अंक में पिरोये सारे विचार, कहानियाँ, बातें, और लफ्ज़ अनेक साथियों की साझी सोच और मेहनत से ही नहीं बल्कि उनके आत्मीय अनुभवों और भावनाओं से भी निकले हैं।
संगठन के साथियों की कठिन ज़िन्दगियों में इस तरह साथ-साथ अपने दिल की बातें खखोलकर अख़बार बनाने के लिए वक़्त निकाल पाना इतना आसान नहीं होता। इसलिए 2018 की सितम्बर में जब साथी ऋचा (लखनऊ-मिनिसोटा) ने यह सुझाव रखा कि क्यों न संगठन के 15-20 सक्रिय साथी मिलकर 2-3 दिन बैठें और अख़बार के केंद्र बिंदु और उसकी सामग्री साथ तय करें, तब सभी को यह विचार जँच गया। ईमेल और फ़ोन वार्ताओं के ज़रिये भी थोड़ा-थोड़ा सोचा गया कि ऐसे कौन से ज़रूरी मसले हैं जिनपर हमने गहरा काम तो किया है पर जिनके बारे में ईमानदारी से आत्म-मंथन करने का मौक़ा नहीं मिला। वहीं से अख़बार के लिए मोटे-मोटे विषयों का चुनाव शुरू हो गया जिनमें शारदा नदी के कटान को लेकर संगठन के अनुभव और खेती-खाना-पोषण पर हो रहे काम ख़ासतौर से उभरे। उसके बाद जब साथी ऋचा (लखनऊ-मिनिसोटा) दिसंबर में सीतापुर आयीं तो 18 साथी तीन दिनों तक साथ बैठे और कठिन मुद्दों की तह में जाते हुए अख़बार में आने वाली सामग्री को लेकर महत्त्वपूर्ण फ़ैसले लिए। इन साथियों में प्रकाश, सुरबाला, रामबेटी, बिटोली, टामा, मनोहर, जमुना, रेखा, रामश्री, राजाराम (मछरेहटा), कौसर, शिवराज, सुनीता (कुतुबनगर), पप्पू, जगन्नाथ, ऋचा (सीतापुर) और रीना शामिल थे। यही नहीं, कटान रोको संघर्ष मोर्चा के एक साथी, शिवबरन, भी हमारे बीच आकर जाति भेद पर हो रही कठिन चर्चा में शरीक़ हुए।
इन चर्चाओं में जिन कहानियों और बातों का लिखना तय हुआ उन्हें हमने कच्चे तौर पर तीसरे दिन छोटे-छोटे समूहों में बँटकर लिखा, फिर साझा किया, फिर दोहराया। उसके बाद शिवराज, सुरबाला, प्रकाश, और ऋचा (सीतापुर) ने आने वाले महीनों में नए बिंदुओं और अनुभवों को जोड़ते हुए लेखन का काम और आगे बढ़ाया। फिर जून माह में ऋचा (लखनऊ-मिनिसोटा) ने इस सारे लेखन को गहराते और आपस में गूंथते हुए, और सारी बातों को एक अख़बार का स्वरुप देते हुए, अमरीका से इस काम को पूरा किया। अब रह गयी साज-सज्जा — सो इस काम को साथी सुधा ने बंगलौर में बैठकर जुलाई में साधा, ताकि साथी तरुण कुमार (मुंबई) इसकी सामग्री के आधार पर साथियों के साथ अगस्त माह में एक नाटक तैयार कर सकें।
ये ब्यौरा यहाँ इसलिए ताकि पाठकों को एहसास हो सके कि संगतिन किसान मज़दूर संगठन के साथियों का संघर्ष सीतापुर के गाँवों के साथ-साथ इस ज़िले से बहुत दूर स्थित शहरों और दुनियाओं में बैठे साथियों को किस क़दर जोड़े हुए है। इसी जुड़ाव का कमाल है कि साथी विशाल जामकर भले ही अभी तक सीतापुर न आये हों, लेकिन हमारे संघर्ष से कुछ ऐसे घुल-मिल गए हैं कि इस अंक के लिए मिनिसोटा से एक ज़बरदस्त लेख हमारे अख़बार के लिए लिख भेजा।
उम्मीद है आपको ‘हमारा सफ़र’ का यह अंक बाँधेगा, और यह भी कि हमारे संगठन के फैलते दायरों और बढ़ती हिम्मतों के साथ-साथ हम सबके क़लम की ताक़त आगे भी ऐसे ही फलती-फूलती रहेगी। तभी हम अपने इर्द-गिर्द फैलती हैवानियत से और मज़बूत होकर लड़ सकेंगे।
अपनी प्रतिक्रिया हमें ज़रूर भेजिएगा।
–‘हमारा सफ़र’ समूह
पूरा अंक पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें: Hamara Safar – July 2019